एक जैसी ही दिखती थी..
माचिस की वो तीलियाँ..
कुछ ने दिये जलाये..
और कुछ ने घर..!!
कुछ ने महकाई अगरबतियां
मन्दिरों में,
तो कुछ ने सुलगाये
सिगरेट के कश...!!
कँही गरमाया चूल्हा
और बनी रोटियाँ,
तो कँही फ़टे बम्ब
और बिखरी बोटियाँ..!!
जली कँही शादी में
बन हवनकुंड की अगन,
तो फूँकी गयी दहेज़ की
कमी से कोई सुहागन..!!
काजल कभी नवजात
शिशु का बनाया,
तो शमशान में किसी
अघोरी की भभूती बनाया..!!
जला आग ठिठुरती ठण्ड में
गरीब को बचाया,
तो बन के बॉन फायर
कभी रईसों को रिझाया..!!
एक सी दिखती थी
माचिस की वो तीलियाँ पर,
सभी ने अपना एक
अलग ही रंग दिखाया..!!
Posted via RAJESH
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